सुनील जैन राणा हैं बेजुबान के हमदर्द , दिल के नुस्खे से कम कर रहे बेजुबानों का दर्द

 सहारनपुर। बेशक, उनका कारोबार तीखे जायके से जुड़ा है लेकिन दिल शहद सरीखा मीठा है। उनका दिल पशु-पक्षियों की भाषा भी समझता है और दर्द भी। जाहिर है, उनकी पीड़ा समझने के लिए जुबान नहीं बल्कि दया और करुणा से भरे दिल की जरूरत है। पशु-पक्षी उन्हें अपना मानते हैं तो वे भी उन पर मित्रवत प्यार लुटाते हैं। उनके बीच कोई रिश्ता नहीं लेकिन यह रिश्ता इंसान को इंसान बने रहने की सीख जरूर देता है।



सुनील जैन राना मसालों का कारोबार करते हैं। सड़कों पर दर्द से कराहते पशु-पक्षियों को देख सभ्य समाज किस तरह मुंह मोड़ लेता है, ये वाकये 20 साल उनकी आंखों के सामने से गुजरते रहे। आखिर, उन्होंने घायल पशुओं का उपचार शुरू कर दिया। नेकी के इस काम को आगे बढाने के लिए मंच की तलाश थी। एनीमल वेलफेयर बोर्ड, चेन्नई से मान्यता प्राप्त श्री दिगंबर बाल बोधनी सभा तथा श्री दयासिंधु जीव रक्षा केंद्र से 1999 में जुड़ गए। इसके बाद बेसहारा, बेजुबानों का विधिवत उपचार शुरू कर दिया। लगभग 25 साल में इन संस्थाओं के माध्यम से वह हजारों बेसहारा पशु-पक्षियों को जीवन दे चुके हैं। अब तो उनकी पहचान आवारा पशुओं के मसीहा के तौर पर है। कुछ लोग तो पालतू जानवरों को भी उपचार के लिए उनके संरक्षण में छोड़ जाते हैं, लेकिन फिर उनकी खबर लेना मुनासिब नहीं समझते।


घुल मिल गए हैं पशु-पक्षी


बेसहारा कुत्ते, पिल्ले व अन्य पशु पक्षी राना को अपना हमदर्द समझते हैं। व्यस्तता के बावजूद वह समय निकालते हैं और इनके बीच घिरे रहते है। पशु-पक्षियों के भोजन आदि का भी प्रबंध करते हैं। अपने केंद्र पर हर वर्ष 10-15 हजार पशु, पक्षियों का उपचार कर उन्हें नव जीवन देते हैं। सैकड़ों कबूतर, दो दर्जन बंदर, गाय-बैल, सांड, कुत्ते, चील, कौवे, मुर्गे-मुर्गियां, खरगोश का उनके यहां उपचार हो रहा है। इनमें से कुछ घायल अवस्था में मिले तो कुछ को लोगों ने जान बूझकर सड़कों पर छोड़ दिया।


दस पशु प्याऊ भी बनवाए


राना ने खुद और जीव रक्षा केंद्र के सहयोग से पशु पक्षियों के लिए महानगर में 10 स्थानों पर प्याऊ का निर्माण कराया है। यहां रोजाना घोड़े, बैल व अन्य पशु-पक्षी पानी पीते हैं।